आजकल, कुछ लोग महाकुंभ की वास्तविक गरिमा को भुलाकर, सोशल मीडिया पर लोकप्रियता पाने के लिए सनसनीखेज और भ्रामक कंटेंट बनाने में लगे हुए हैं। साधु-संतों के बीच शांति और ध्यान के क्षणों को, उनकी अनुमति के बिना इंटरव्यू के नाम पर छेड़छाड़ करके, खबरों और वीडियो क्लिप्स का हिस्सा बना दिया जाता है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करता है, बल्कि इस पूरे धार्मिक अनुष्ठान की पवित्रता को भी नुकसान पहुंचाता है। साधु-संत जो आध्यात्मिकता और तपस्या में लीन रहते हैं, उनका ध्यान भंग कर उन्हें सार्वजनिक मंचों पर घसीटना, उनकी आत्मिक यात्रा और महाकुंभ के उद्देश्य के खिलाफ है।
इसके अलावा, जो वीडियो वायरल हो रहे हैं, जैसे मोनालिसा का वायरल वीडियो, वह महाकुंभ के असली उद्देश्य से बहुत दूर हैं। महाकुंभ के दौरान, जिनका मुख्य उद्देश्य आस्था और धार्मिकता है, इन वायरल वीडियो के ज़रिए एक पूरी तरह से अलग प्रकार की संस्कृति और जीवनशैली को प्रदर्शित किया जा रहा है। यहां कुछ लोग, जो रील्स और व्यूज के लिए महाकुंभ के पवित्र स्थल पर जाते हैं, उन्हें प्रचार-प्रसार और सनसनीखेज कंटेंट बनाने का अवसर मिलता है। इससे यह संदेश जाता है कि महाकुंभ सिर्फ एक फोटोग्राफ या वीडियो शूट करने का मौका है, जबकि इसका वास्तविक उद्देश्य न केवल आत्मिक शांति प्राप्त करना है, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहर को समझना और उसका सम्मान करना भी है।
महाकुंभ का उद्देश्य सद्गति, शांति और तात्त्विक उन्नति होना चाहिए, न कि इसका इस्तेमाल सिर्फ एक मनोरंजन के स्रोत के रूप में। मीडिया और सोशल मीडिया को चाहिए कि वे इस धार्मिक महापर्व की गरिमा को बनाए रखें और इसे केवल एक धार्मिक घटना के रूप में प्रस्तुत करें, न कि इसे किसी विवाद या शोरगुल के माध्यम से सुर्खियों में लाने की कोशिश करें।
यहां सवाल यह उठता है कि क्या आज की युवा पीढ़ी महाकुंभ के आध्यात्मिक महत्व और इसके सांस्कृतिक पहलुओं को समझ पा रही है, या वे इसे सिर्फ एक ट्रेंड और हॉट टॉपिक के रूप में देख रहे हैं? सोशल मीडिया का प्रभाव और वायरल संस्कृति ने लोगों के नजरिए को बहुत हद तक बदल दिया है, और महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन को भी इसने अपनी गिरफ्त में ले लिया है।
Impact of social media on the dignity of Maha Kumbh: Deviation from religious purpose